आह्वान

संस्कृति मनुष्य समाज की जड़ होती है, जैसे पेड़ की जड़। पेड़ अपनी जड़ को छोड़ देता है, तो सूख जाता है, नष्ट हो जाता है। अपने अस्तित्व को खो देता है, वैसे ही मनुष्य समाज जब अपने मूल को, जड़ को भूल जाता है अर्थात् अपनी संस्कृति को भूल जाता है, तो अपने अस्तित्व को खो देता है। वह जीवन में अनेकों प्रकार के कष्ट-दुःख-अज्ञान-अभावादि से युक्त हो जाता है।

अतः आईये भोगोन्माद, मजहबोन्माद एवं युद्धोन्माद रूपी पाश्चात्य संस्कृति को नहीं अपितु सार्वभौमिक, वैज्ञानिक एवं पंथ-निरपेक्ष पावनी संस्कृति, भारतीय संस्कृति, याज्ञिक संस्कृति को अपनायें।

भाग्य हाथों की लकीरों में नहीं, अपितु भाग्य लिखने की यज्ञ रूपी कलम हमारे हाथों में है। तो आईये स्वयं यज्ञ को अपनायें एवं यज्ञीय जीवन जीये और अपने सौभाग्य को जगायें।

*भाग्यं न हस्तरेखासु, लिखितं केनचिदपि।
स्वभाग्यं लिखितुं मित्रम्, यज्ञो भवति लेखनी ।।*

*हस्ते आदाय तं मित्रम्, लिख भाग्यं यथेप्सितम्।
तदेव फलति काले, विविधं लभते सुखम् ।।*

न करो और प्रदूषण करने की भूल।
यज्ञ से जुड़े यह है संस्कृति का मूल।।

यज्ञ-महोत्सव

भारतीय ऋषि संस्कृति जिसमें यज्ञ, योग एवं आयुर्वेद जैसी अमूल्य विधाएँ एवं विद्याएँ हैं|

द्रव्य-यज्ञ, योग-यज्ञ एवं ज्ञान-यज्ञ का त्रिवेणी संगम है “यज्ञ-महोत्सव “

  • द्रव्य-यज्ञ (हवन ):-जिसमें यज्ञ से रोगों की चिकित्सा, वायु आदि पंचतत्वों की शुद्धि, दोष अर्थात् ग्रह-पितृ-श्रापित आदि सभी प्रकार के दोष, दुःख, दरिद्रता एवं अशुभ से मुक्ति पाने के साथ ही सामाजिक, पारिवारिक, शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक सुख एवं समृद्धि हेतु
  • योग-यज्ञ:-जिसमें रोगानुसार योगाभ्यास एवं योग विज्ञानं के गूढ़ रहस्यों पर प्रकाश
  • ज्ञान-यज्ञ:-जिसमें वेद, उपनिषद, दर्शन एवं आयुर्वेद आदि जीवन उपयोगी शास्त्रों का स्वाध्याय एवं सत्संग