अग्निहोत्र महिमा

एतेषु यश्चरते भ्राजमानेषु यथाकालं चाहुतयो ह्याददायन्।
तन्नयन्त्येताः सूर्यस्य रश्मयो यत्र देवानां पतिरेकोऽधिवासः।। -मु.उ. 1,2,5

सात लपटों वाली अग्नि की शिखाओं में जो यजमान, ठीक समय पर आहुतियां देता हुआ कर्म को पूरा करता है उसको ये आहुतियां, सूर्य किरणों में पहुंच कर संचित कर्मरूप होकर वहां पहुंचा देती है जहां जगत् के आधार परमात्मा को साक्षात् जाना जाता है।

यथेह क्षुधिता बाला मातरं पर्युपासते। एवं सर्वाणि भूतान्यग्निहोत्रमुपासत।। -छा.उ. 5,24,5

इस लोक में जैसे भूखे बच्चे, माता से सुखादि की याचना करते हैं। ऐसे ही सारे प्राणी, अग्निहोत्र ;यज्ञद्ध की उपासना करते हैं।

यज्ञों में अग्निहोत्र महत्वपूर्ण माना गया है, इसलिए उसका विशद वर्णन मिलता है:-

अग्नये चेव सायं, प्रजापतये चेत्यब्रवीत्। सूर्याय च प्रातः प्रजापतये चेति।।

अग्निहोत्र में सायंकाल अग्नये एवं प्रजापतये तथा प्रातः काल सूर्याय और प्रजापतये बोलते हुए आहुति दी जाती है।

अग्निहोत्रे स्वाहाकारः –

अग्निहोत्र में स्वाहा बोलना चाहिये।

एतद्वै जरामर्य सत्रं यदग्निहोत्रम्।
जरया ह वा मुच्यते मृत्युना वा।।

यह अग्निहोत्र जरामर्य सत्र है क्योंकि यह अत्यधिक अशक्तता अथवा मृत्यु के बाद ही छोड़ा जा सकता है।

अग्निहोत्रेऽश्वमेधस्याप्तिः –

अग्निहोत्र करने पर अश्वमेध का फल मिलता है।

मुखं वा एतद्यज्ञानां यदग्निहोत्रम्। –

यह अग्निहोत्र यज्ञों का मुख है।

सर्वस्मात्पाप्मनो निर्मुच्यते स य एवं विद्वानग्निहोत्रं जुहोति।

जो मनुष्य अग्निहोत्र करता है वह सब पापों (दोषों या प्रदूषणों) से छूट जाता है।