यज्ञ और पर्यावरण

1.1 वातावरण से प्रदूषण को दूर करने में यज्ञ के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए रस्तोगी तथा कुछ शोधकर्ताओं द्वारा वर्ष 2020 में एक अध्ययन किया गया। पहली बार प्रयोग 24 जून 2018 को किया गया था और फिर लगभग एक वर्ष बाद 2 जून 2019 को दोहराया गया। दिल्ली के लगभग 23 निगरानी स्टेशनों से डेटा एकत्र किया गया। यह वैज्ञानिक अध्ययन 2018 और 2019 में यज्ञ करने के बाद यादृच्छिक (Randomly) दिनों में आयोजित किया गया। जिसमें पाया गया कि प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई और वातावरण में सूक्ष्म कण भी काफी कम पाए गये। विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि विभिन्न घरों में एक साथ किए जाने वाले छोटे यज्ञों / अग्निहोत्रों के साथ भी इसका समग्र प्रभाव पड़ता है।

Rastogi et al. (2020)

1.2 वर्ष 2016 में लाड और पालेकर द्वारा पर्यावरण शुद्धि हेतु प्राकृतिक और जड़ी-बूटियों से बने धूप को तैयार करके और उसके मूल्यांकन हेतु एक अध्ययन किया गया। हर्बल धूप में गाय का गोबर, गाय का घी, गाय का दूध, कपूर और कई अन्य जड़ी बूटियों का उपयोग किया गया जिनमें एक सराहनीय सुगंध होती है। तैयार धूप की रोगाणुरोधी गतिविधि की जाँच की गई और यह पाया गया कि इसका प्रयोग विभिन्न अस्पतालों, होटलों, प्रयोगशालाओं आदि में कीटाणुशोधन के लिए एक संभावित स्रोत हो सकता है।

Lad et al. (2020)

1.3 वर्ष 2020 में छगंती ने वायु प्रदूषण पर अग्निहोत्र के प्रभावों का पता लगाने हेतु शोध किया। अध्ययन हेतु 2012 से 2019 तक हर साल संयुक्त राज्य अमेरिका के जॉर्जिया राज्य में अटलांटा के पास, वर्ष में अलग-अलग समय पर यज्ञ प्रयोग किया गया। यज्ञ से पहले और बाद में P.M मूल्यों के बारे में डेटा एकत्र किया गया। उन सभी ने वायु प्रदूषण के समाधान के रूप में अग्निहोत्र की प्रभावशीलता के बारे में उत्साहजनक परिणाम दिखाए।

Chaganti, V. R. (2020)

1.4 कुमार चक्रवर्ती, भास्कर आदि कुछ शोधकर्ताओं ने भिंडी की वृद्धि, उपज और गुणवत्ता मानकों पर हवन जैविक खेती के प्रभावों का पता लगाने हेतु वर्ष 2012 में खरीफ की फसल के दौरान एक शोध किया।इस प्रयोग हेतु पांच पौधों को यादृच्छिक (Randomly) (randomly) रूप से चुना गया और इन नमूनों का विश्लेषण उनकी वृद्धि, उपज, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सूक्ष्म पोषक तत्व के लिए किया गया। दर्ज किए गए डेटा का विश्लेषण “Analysis of variance” तकनीक और “F” टेस्ट द्वारा किया गया। जो यह दर्शाता है कि वृद्धि, उपज और गुणवत्ता के मामले में हवन उपचार अन्य परिस्थितियों की तुलना में बेहतर है।

Kumar. R. (2017)

1.5 तुलधर एवं अन्य कुछ शोधकर्ताओं ने वर्ष 2019 जल में दवा प्रतिरोधी पर अग्निहोत्र राख के प्रभावों का पता लगाने हेतु शोध किया। यह प्रयोग मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट (MDR) E. coli को जीवाणुरहित पानी में डालकर किया गया। नौ जीवाणुरहित बोतलों में जीवाणुरहित पानी के साथ एमडीआर E. coli को डाला गया। बोतलों को कमरे के तापमान पर रखा गया और निश्चित तापमान के 24 घंटों के बाद प्रत्येक बोतल का membrane filter method और Most Probable Number (MPN) method द्वारा बैक्टीरिया की संख्या और जीवाणु भार के लिए आकलन किया गया। इसी तरह का प्रयोग ऊष्मायन के तीसरे और पांचवें दिन किया गया था।
पांचवें दिन अग्निहोत्र राख उपचार से जीवाणुओं का भार उल्लेखनीय रूप से कम हो गया। इस प्रकार वर्तमान अध्ययन ने पानी में मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट E. coli पर अग्निहोत्र राख की प्रभावशीलता के बारे में उत्साहजनक परिणाम दिखाए।

Tuladhar, R. (2019)

1.6 इस अध्ययन का उद्देश्य छोटे कार्यस्थलों पर फंगस को कम करने में अग्निहोत्र के प्रभावों का पता लगाना था। इस अध्ययन के लिए पेट्री प्लेट्स को एक बंद कमरे के चारों कोनों और एक को केंद्र में रखा गया और 5 मिनट के बाद फंगल बीजाणुओं को गिना गया। फिर उसी कमरे के अंदर ‘हवन सामग्री’ का धूम किया गया और धूम को 24 घंटे की अवधि के लिए अंदर रहने दिया गया। धूम के बाद इसी तरह से पेट्री प्लेटों के एक और सेट को रखा गया और फंगल बीजाणुओं को गिना गया और धूम के बाद पेट्री डिश में फंगल बीजाणुओं की संख्या में उल्लेखनीय कमी पाई गयी।
इस प्रकार इस शोध ने फंगस को कम करने में अग्निहोत्र की प्रभावशीलता के बारे में उत्साहजनक परिणाम दिखाए।

Tewary, R., & Mishra, J. K. (1997)

1.7 कालीमिर्च के एंटीबायोटिक गुणों पर अग्निहोत्र के प्रभाव का पता लगाने हेतु वर्ष 2016 में मिश्रा व पी शोधकर्ताओं ने कुछ रोगजनक जीवाणुओं के विकास पर पौधे के अर्क और अग्निहोत्र के संयुक्त प्रभाव का अध्ययन किया। कालीमिर्च का अर्क gram -ve और gram +ve बैक्टीरिया दोनों पर प्रभावी साबित हुआ और जिससे ये सिद्ध हुआ कि अग्निहोत्र ने रोगजनक बैक्टीरिया के विकास को नियंत्रित करने में निर्णायक रूप से मदद की। इसलिए कालीमिर्च के अर्क के साथ अग्निहोत्र उपचार का सुझाव दिया गया। अग्निहोत्र थेरेपी को विभिन्न प्रकार की बीमारियों, विशेष रूप से जीवाणु रोगों के इलाज के वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके के रूप में स्थापित किया गया।
इस प्रकार, इस शोध ने कालीमिर्च के एंटीबायोटिक गुणों पर अग्निहोत्र के प्रभाव के बारे में उत्साहजनक परिणाम दिखाए।

Mishra, P. (2016)

1.8 मुकुंद व कुछ अन्य शोध कर्ताओं ने वर्ष 2008 में वायुजनित सूक्ष्मजीवों पर अग्निहोत्र के प्रभावों का पता लगाने हेतु अध्ययन किया। अग्निहोत्र प्रदर्शन करने से पहले 10 मिनट के लिए एक चयनित कमरे में sterile Nutrient Agar (NA) और Sabouraudís Dextrose Agar (SDA) को उजागर किया गया और कॉलोनी की गिनती दर्ज की गई। अग्निहोत्र सूर्योदय और सूर्यास्त के समय बिल्कुल पिरामिड के आकार के तांबे के बर्तन में किया गया और प्लेटों के एक और सेट को अग्निहोत्र करने के 10 मिनट और 20 मिनट बाद उजागर किया गया और ऊष्मायन के बाद कॉलोनी की गिनती की गई।
अग्निहोत्र करने के बाद जीवाणु कॉलोनी में 63% की कमी और कवक कॉलोनी की संख्या में 91% की कमी पाई गई। इस शोध से यह सिद्ध हुआ कि अग्निहोत्र एयरस्पोरा के विरुद्ध बहुत प्रभावी भूमिका निभाता है।

Mukunda, S., Kekuda, P., & Chetan, D. M. (2008)

1.9 पचोरी व आर.आर आदि शोधकर्ताओं ने वर्ष 2013 में Aeromicroflora (AMF) पर अग्निहोत्र के धुएं के प्रभावों का पता लगाने हेतु शोध किया। इस अध्ययन में अग्निहोत्र के धुएं की AMF पर प्रभाव की जांच की गई और यह पाया गया कि अग्निहोत्र के बाद AMF की वृद्धि प्रतिक्रिया में कमी आती है अर्थात बैक्टीरिया, कवक और actinomycetes के लिए क्रमशः 43%, 30.84% और 56.07% कमी दर्ज की गयी। इस प्रकार, वर्तमान अध्ययन ने AMF पर अग्निहोत्र के धुएं की प्रभावशीलता के बारे में अपेक्षित परिणाम दिखाए।

Pachori, R. (2013)

1.10 निहारिका शिवहरे और अनीता गौड़ द्वारा वर्ष 2019 में किये गये शोध में वातावरण और स्वास्थ्य के प्रबंधन में अग्निहोत्र के प्रभावों की जांच की गयी। हवन में प्रयुक्त विभिन्न सामग्रियों पर किए गए वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला कि हवन पर्यावरण को स्वच्छ करने के साथ-साथ शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए सक्षम है। हवन के धुएं का उपयोग न केवल हवा को कीटाणुरहित करने के लिए किया, बल्कि हवन को नैनो तकनीक पर आधारित शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास के लिए भी किया जा सकता है। इसलिए हवन को पर्यावरण प्रदूषण को शुद्ध करने के सबसे किफायती साधनों में से एक माना गया। इस प्रकार इस अध्ययन ने वातावरण और स्वास्थ्य के प्रबंधन में अग्निहोत्र की प्रभावशीलता के संबंध में उत्साहजनक परिणाम दिखाए।

Gour, N. S. A. (2019)

1.11 ममता सक्सेना व अन्य द्वारा वर्ष 2018 में किये गये शोध का उद्देश्य Particulate Matter पर यज्ञ चिकित्सा के प्रभाव का पता लगाने हेतु अध्ययन के दो सेट आयोजित किए गए। यज्ञ के प्रभाव को देखने के लिए यज्ञ से एक दिन पहले, यज्ञ क्रिया के दिन और यज्ञ के दो दिन बाद तक Digital PM Sampler का उपयोग करके PM2.5, PM 10, CO2 तापमान और वायु सांद्रता दर्ज की गई। इस अध्ययन में आवासों के अंदर यज्ञ करने के बाद PM2.5, PM10 और CO2में कमी दिखाई दी। वर्तमान अध्ययन ने वैदिक तकनीक यज्ञ को अन्तर्वासीय वायु प्रदूषक (Indoor Air Pollutants) विशेष रूप से PM और CO2 को कम करने के समाधान के रूप में पेश किया।

Mamta, S., Kumar, B., & Matharu, S. (2018)